Friday, February 12, 2016

आखिर कब बंद होंगी ये तारीख पर तारीख

(गूगल से ली गई तस्वीर)
न्यायालयों में न्याय के नाम पर मिलती हैं सिर्फ तारिखें....

इन तारिखों को बंद करने और जल्दी न्याय पाने के लिए आईए जुड़िए न्याय यात्रा के साथ....

क्या आपको लगता है कि देश में लोगों को जल्दी न्याय मिल पाता है?

देश में जल्दी न्याय किन लोगों को मिलता है?

देश की न्याय व्यवस्था के बारे में आपका क्या सोचना है?

न्याय व्यवस्था में सुधार लाने के लिए किस प्रकार के कदम उठाने चाहिए?

क्या आपको लगता है कि देश में सिर्फ गरीब लोगों को ही न्याय पाने में कठिनाई होती है?

लोगों को जागरुक करने और न्याय व्यवस्था में सुधार लाने के लिए 35 दिनों की यात्रा पर निकली न्याय यात्रा देश के हर शहर में घूमकर लोगों से इस यात्रा के साथ जुड़ने की अपील कर रही है. देश के न्यायालओं में मुकदमों का अंबार लगा हुआ है लेकिन उन मामलों पर कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं होता. आए दिन छोटे से छोटे और बड़े से बड़े मामले न्यायालओं में आते हैं लेकिन उनपर जल्दी से कार्रवाई नहीं की जाती. 

इतना ही नहीं गरीब लोग तो न्याय पाने की चाहत में न्यायालओं के चक्कर काटते रह जाते हैं और एक दिन ऐसा भी आता है कि उनकी मौत हो जाती है लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल पाता. गरीबों के लिए न्याय पाना एक सपना सा बन गया है. यदि कोई मामला हाईप्रोफाइल होता है तो उस मामले में फैसला आने में सालों-साल लग जाते हैं क्योंकि न्याय व्यवस्था ही एसी बन गई है जो कि अमीरों को पहले सुरक्षित करने के बारे में सोचती है. कोई भी अमीरों के साथ किसी भी प्रकार के मतभेदों में पड़ना नहीं चाहता क्योंकि लोग समझते हैं कि अमीरों पर तो केस नहीं होगा और अगर कोई केस होगा भी तो उनपर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाएगी और वे आराम से छूट जाएंगे.

हमारी सरकार और न्यायालओं में सुधार लाने की आवश्यकता है. देश में लंबित पड़े मामलों की संख्या 3 करोड़ तक पहुंच चुकी है और अगर इसी प्रकार न्यायालयों में कार्य होता रहा तो यह आंकड़ा कहा तक पहुंचेगा इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. न्यायपालिका को लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ कहा जाता है लेकिन न्यायालओं के कार्यों के ढीलेपन के कारण लोकतंत्र के इस तीसरे स्तंभ से लोगों का भरोसा उठ गया है. आम लोग चाहते हैं कि न्याय व्यवस्था में सुधार लाया जाए क्योंकि देश में अगर देरी से न्याय मिलेगा तो अपरधियों के हौंसलें और बुलंद हो जाएंगे और वे किसी भी अपराध करने से भय नहीं करेंगे. इन्हीं सब मुद्दों को उठाते हुए न्याय यात्रा लोगों से अनुरोध कर रही है कि अपने हक के लिए आवाज उठाएं और न्याय व्यवस्था को सुधारने के लिए न्याय यात्रा का हिस्सा बनें.

Tuesday, February 9, 2016

लचर न्याय व्यवस्था में सुधार लाने को निकली न्याय यात्रा

वैसे तो हमारे देश की न्याय व्यवस्था कैसी है ये तो सभी जानतें हैं. यहां किसी को इंसाफ जल्दी मिल जाता है, तो किसी को मिलती है तो सिर्फ तारीख पर तारीख. न्याय पाने की चाहत में लोग न्यायालयों के चक्कर लगाते-लगाते मर जाते हैं लेकिन न्याय मिलना लोगों के लिए जैसे एक सपना सा बन जाता है. इस प्रकार की न्याय व्यवस्था में सुधार लाने के लिए  फोरम फॉर फास्ट जस्टिस ने एक न्याय यात्रा निकाली है, जिसके द्वारा न्याय व्यवस्था में सुधार लाने के लिए लोगों को जागरुक किया जा रहा है.

30 जनवरी 2016 को दिल्ली के राजघाट से निकली 35 दिनों की यह न्याय यात्रा जम्मू से कन्याकुमारी तक 170 शहरों का सफर तय करेगी. इस यात्रा को दो समूहों में बाटा गया है जो कि दो मार्गों पर देशभर में यात्रा करने के बाद 4 मार्च को जंतर मंतर पर पहुंचेगी. फोरम फॉर फास्ट जस्टिस ने राजघाट से अपनी यात्रा शुरु करने से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी थी. कॉन्फ्रेंस में इस संस्था के अध्यक्ष भगवान जी रैयानी ने कहा था कि फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के सदस्य देशभर में यात्रा कर लोगों को जागरुक करेंगे. उन्होंने कहा था कि इस यात्रा के दौरान जितने भी सुझाव उन्हें लोगों के द्वारा मिलेंगे उन्हें उनकी संस्था प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कानून मंत्री को संशोधन करने के लिए भेजेगी.

वहीं इस मुहीम से जुड़े समाजसेवी और अमन मूवमेंट के अध्यक्ष राज काचरु ने जानकारी दी कि भारत में 10 मिलियन आबादी पर केवल 10 जज हैं परन्तु यह संख्या 50 जज प्रति 10 लाख आबादी के हिसाब से होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि भारत में चेक बाउंस होना एक आम बात है. सन् 1800 में अंग्रेजों द्वारा चेक बाउंस के लिए नेगोशिएबल एक्ट बनाया गया था जिसे 1981 में भारत में लागू कर दिया गया था, लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि दिल्ली के न्यायालयों में पेंडिंग पड़े 86 प्रतिशत मामलों में से 67 प्रतिशत मामले चेक बाउंस के हैं और अगर इन 86 प्रतिशत मामलों में से 67 प्रतिशत मामलों को हटा दिया जाए तो दिल्ली न्यायालयों को सिर्फ 19 प्रतिशत मामलों में ही फैसला देना पड़ेगा.

इस न्याय यात्रा के सदस्य हर शहर में घूम कर लोगों से अपील कर रहे हैंं कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस अभियान से जुड़े जिससे कि देश की न्याय प्रक्रिया में तेजी आ सके. शहर-शहर में घूमते हुए न्याय यात्रा के सदस्यों ने कई लोगों से बात की जिन्होंने इस यात्रा की काफी सराहना की. सदस्यों से कई एसे लोग भी मिले जो कि किसी न किसी केस के चलते न्यायालयों के चक्कर लगा रहे हैं. उन लोगों का कहना है कि न्याय की आस लगा कर बैठे हैं लेकिन पता नहीं न्याय कब मिलेगा. न्याय यात्रा के सदस्यों ने ऐसे ही कई लोगों की आपबीती सुनी और उनसे आग्रह किया की वे भी इस यात्रा से जुड़कर न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए अपनी आवाज़ उठाएं.